Saturday, February 11, 2017

Cg vayang

��छ०ग० व्यंग्य - ल ब रा ��

देख रे आंखी, सुन रे कान
          आ गे हावय, नवा बिहान
नेता के बात ल , झन दे तैं ध्यान
          पप्पू खेलु एक समान |

नोटबंदी के कारण भइया
         पताल, अब्बड़ फेकावत हे
जियो, सिम ल जबले पाए
         टुरा मन अब्बड़ मेछरावत हे |

रात रात भर नेट चलत हे
       पढ़ाई लिखई ल भुलावत हे
पेल ढपेल के स्कूल भेजेंव
       ता उहां जाके उंघावत हे |

अब्बड़ लबरा मंतरी भैया
         गुरतुर गुरतुर गोठियावत हे
शिक्षा कर्मी मन ल घलो
         लाली पाप धरावत हे  |

लबरा के खाय, तभे पतियाय
        हांना ल सच करत जावत हे
का सोला,का सतरा भैइया
        दिन-बादर बस जावत हे।

कहानी बनगे किसानी हा संगी
             बनिया मन मोटावत हे
एक कोठी धान नई बांचिच
        जम्मे कौड़ी के भाव बेचावत हे।

ओरमे वाला जींस पहिनके
        टुरा मन अब्बड़ खजवावत हे,
टुरी मन घलो कम नई हे
        सेल्फी बर मुह ला लमावत हे।

No comments:

Post a Comment

chhattisgarhi Rajbhasha